Tuesday, August 24, 2010

महिलायों की आजादी या नंगा नाच -It's not freedom

भारत ही एक पहला ऐसा देश जहाँ पुरुषों और महिलायों के बीच में पवित्र रिश्तों की डोर है | जैसे की भाई - बहन, पति - पत्नी, बाप - बेटी और इत्यादि | साथ ही साथ सभी के कामों को वक्त और अनुभव के अनुसार बताया भी गया है | भारतीय संस्कृति के अनुसार महिलाओं को उच्च पद पर भी रखा गया है जैसे अगर बीवी है तो वह पत्नी धन, बेटी है तो पुत्री धन और इत्यादि जिसे हमेशा पर्दे में ही राखह गया है क्योकि यह एक परिवार महत्वपूर्ण हिस्सा होने के साथ साथ धन भी है, जो सोंदर्य और वैभव का एक मात्र आभूषण है | जिसकी जिम्मेदारी होती है : अपने से छोटों को सही परवरिश देना और उनकी देखरेख, जिससे वे सही सिख ले सके | भारत वर्ष में महिलायों ने नियम और अपनी सूझ - बुझ से गौरव भी हांसिल किया है | हलाकि कही कही तो हिजाब और बुर्के के भी नियम है, जोकि सराहनीय है | हिंदुस्तान में एक दुसरे की कद्र के लिए ही ये कायदे और नियम बनाये गए है | अन्य देशों में ऐसा नहीं होता है, और मुझे यह कहते हुआ गर्व है कि इसी कारण पूरी दुनिया हिंदुस्तान की दीवानी है |

आज का भारत ढ्कोच्लों में फसता जा रहा है और छूट इसलिए मिल जाती है क्योकि यह लोकतंत्र है जहा सभी को आजादी का पूरा हक़ है मैं सोच रहा हूँ कि क्या आजादी में कोई बंदिश नहीं होती ? और जवाब भी मेरे ही पास है कि आजादी में भी बंदिश होती हैं जैसे आजादी वाले और तानाशाही देशों में आतंकवाद के लिए कोई आजादी नहीं यह देश और नागरिकों के लिए सही संकेत नहीं हैं | मैं उपरोक्त कथन से यही कहना चाहता हूँ कि आजादी सही मायने में मनमानी को नहीं कहते और न ही इसकी तुलना अपने आजादी के हक़ से करनी चाहिए |

आज कल कि महिलाएं घरों से बहार निकल कर अपना प्रदर्शन करने के लिए तत्पर रहती हैं, और इसमें गौरव समझती है अगर कोई उन्हें टोक दे तो समझो बस उसकी तो सहमत आ गई, अगर वह बुजुर्ग है तो मानव अधिकार कि बात करती है और जवान है तो पोलिसे को फोन कर उसकी खबर लेती हैं | मैं उस दिन के इन्तजार में हूँ जब हर कोई इन्हें टोकेगा या सभी इसे बढ़ावा देंगें तो क्या होगा ? इसका कोई भी जवाब मेरे पास नहीं है और वो नजारा कैसा होगा क्या भारत का नाम तो नहीं बदल जायेगा जैसे लोग बदल गए है ?

आशा करता हूँ जोभी होगा सराहनीय होगा जो अब तक देखता आया हूँ उसके अनुसार लोगों को पसंद और कायदे से गलत ही होता आया है | आखिर क्या कमी है भारतीय संस्कृति में ? अब और अधिक शब्द नहीं है |
धन्यवाद

Monday, July 26, 2010

नेतागिरी की अजब कहानी - - - - - - - - - हरीश कुमार तेवतिया

चाहे गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह गुनाहगार हों या ना हो लेकिन गुजरात सरकार को पक्ष लेना और विपक्ष को हमेशा की तरह विरोध करना जरुरी क्यों है? सवाल यह उठता है कि क्या राजनीतिज्ञों को भारतीय कानून पर भरोसा नहीं है?

पक्ष-विपक्ष की क्या जिम्मेदारी होती है? हमें तो समझ आ रहा है की केवल समर्थन अथवा विरोध ही उनका काम होता है. राजनीति का यह एक अजीब रंग है कि राजनीतिज्ञ अदालत के बीच में भी अपना फैसला सुना सकते है! ये क्या मजाक है "जिसका काम उसी का साजे, कोई और करे तो डंडा बाजे" - अगर सीबीआई जैसी संस्था अपने काम को सही तरह से नहीं करेगी तो हो सकता है कुछ समय बाद केवल राजनीति ही न्याय और अन्याय करेगी! "जिसकी लाठी उसकी भैस", अच्छा है.

काम की कमी नहीं है, पर राजनीति में कोई काम नहीं है, केवल राजनीति ही है! मिया - बीबी जान से गए और मामला विपक्षी दलों के खेल तक जा पहुँच. मेरे विचार से कानून को अपना काम करना चाहिए, और राजनीतिज्ञों को इसमें रोड़ा नहीं अटकाना चाहिए, ना ही पक्ष को और ना ही प्रतिपक्ष को.

ऐसे हालात में यह आशा करना कि "भारतीय राजनीति अब नया रंग लेकर आएगी" दूर की गोटी लगती है.

Tuesday, July 20, 2010

हमारीवाणी का स्वागत है!


ब्लॉग जगत में हमारीवाणी का स्वागत है. ब्लॉगवाणी के बंद हो जाने के बाद जब 15 -16 दिन पहले मैंने अपने ब्लॉग को हमारीवाणी पर रजिस्टर कराया, तो उसके एक-दो दिन बाद हमारीवाणी की तरफ से एक ईमेल आई   जिसमें मेरी सदस्यता के बारे में बताया गया था, उसे पढ़कर मुझे लगा कि फिर से सब कुछ ठीक हो जायेगा. लेकिन उसमें दिए लिंक पर क्लिक करने पर हमारीवाणी को fleedcluster पर चलते देख मैं परेशान ही नहीं मायूस भी हो गया था.

लेकिन आज हमारीवाणी को देख कर मन प्रसन्न हो गया, मैं उत्सुकता वश उसके फीचर को देखने लगा, थोडा समय बिताने के बाद मैंने देखा कि हमारीवाणी ने सबसे पहले मुझे ही सदस्यता दी और मेरे ब्लॉग को सम्मिलित किया, यह देखकर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, अब मैं फिर से पुरे जोश के साथ ब्लॉग लिखने को तैयार हूँ!


हमारीवाणी का धन्यवाद और हार्दिक शुभकामनायें!!

Thursday, July 8, 2010

फिर मर गई इन्सानियत

आज के इस दौर में, हम लोग अपनी अंतर आत्मा का बलात्कार करते ही जा रहे है | जिसका एक उदाहरण मैं लिख रहा हूँ |

कुत्ता जो सभी के लिए वफादार साबित होता आया है और भविष्य में भी वफ़ादारी के लिए ही जाना जायेगा, उसी के साथ कुछ लोगों ने क्या कियापिछले सप्ताह की यह घटना है कि एक कुत्ता गली में रात के समय किसी अनजान व्यक्ति को आने नहीं देता था, लेकिन वह उस गली के बच्चो से लेकर बूढों तक सभी की पहचान रखता थावैसे तो वह पिछले सप्ताह से ही जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहा था, और आज उसका निधन हो गयाकारण:  गली के सभी रहने वाले लोगों के साथ वफ़ादारी है | वहां के लोगों को यह मालूम ही नहीं कि वह किसके कारण मौत के घाट उतारा गया|

आज के समय में किसी को मौत के घाट उतारने की कोशिश किस हद तक की गई, जोकि कामयाब भी हो गई|
पहले तो उस कुत्ते के ऊपर तेजाब का इस्तेमाल किया गया, जिसके कारण उसका सारा शरीर जल चुका था |
लेकिन कुछ लोगों ने उसे बचाने के लिए उसकी मरहम-पट्टी की तो दोबारा से किसी ने उसके ऊपर तेजाब का इस्तेमाल किया और गले में रस्सी बांधकर उसको मौत के घाट उतार दिया | जो हमे बचाता है हम उसी को मौत के घाट उतार देते हैं

अब किसको क्या कहा जाये, हमे तो लगता है अब केवल एक ही तरह के लोग बचे हैं जो मुहं में  राम और बगल में छुरी रखते हैं |

Thursday, June 17, 2010

गहराई : जीवन की

समुद्र की गहराई को,
पानी ही छुपाता है!
इसीलिए तो तैरने वाला,
डूब जाता है!

गहराई तो सभी में होती है,
अंतर इतना सा है की,
कोई समुद्र, तो कोई तालाब
बनकर रह जाता है!

गहराई भी जरुरी है क्योंकि,
समतल धरा पर पानी,
टिक नहीं पाता है!

प्रशन यह है कि, 
तालाब क्या और
समुद्र क्या पाता है?
कोई क्या पायेगा?
सब कुछ तो क्षमता से आता है!

किस्मत भी वह खुद बनाता है,
इसीलिए उसे याद रखा जाता है,
पर लोगो को भ्रम हो जाता है,
कि वह किस्मत की ही खाता है,
और क्षमता का मूल्य व्यर्थ हो जाता है!

कोई समाप्त,
तो कोई जीता ही जाता है,
किस्मत का खेल,
कौन जान पाता है,
तालाब तो पार कर भी लूँ हरीश,
पर समुद्र का छोर,
मुश्किल से आता है!

सही - गलत और लाभ - हानि


जहाँ लाभ होता हैं क्या वही सही होता हैं ? नहीं!

फायदा हमारे क्या काम आयेगा?
नुकसान से कुछ ना कुछ सिखा ही जायेगा!
सही को याद और गलत को नकारा जायेगा,
सही लाभ को करीब ही लायेगा,
गलत अंत में हमे हानि दे जायेगा,
अंजान बीच में फसकर चिल्लाएगा,
बताइये ये भी क्या अब ब्लॉग पर लिखा जायेगा!

क्या सही-गलत का फैसला लाभ-हानि से हो पायेगा?

Tuesday, June 15, 2010

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
दूध पीना - हंसना - रोना - खेलना ही है मेरा काम,
जाना तो केवल अपना और परिवार के सदस्यों का नाम,
कुछ करना है तो पढ़ना है, क्योंकि जरुरतमंदो का है यह काम,
मुझे दोस्त भी मिले उनका भी था यही काम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
माता - पिता ने कहा सीखो अब कुछ अच्छे काम,
माहौल ख़राब था इसीलिए मैं सीख गया कुछ गलत काम,
खिंचा - तानी में फंस गया जीवन और मैं होने लगा नाकाम,
माता - पिता ने कहा अब लो कुछ समय ईश्वर का नाम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
अब कुछ समझ नहीं आया करना था रोजी के लिए काम,
नौकरी भी लगी पर अभी थे कुछ अच्छे और बुरे मेरे काम,
जिम्मेदारी बढने लगी और माता - पिता देने लगे मुझको ज्ञान,
शादी के लिए था मैं अब तैयार मैंने ही किये थे कुछ ऐसे इंतजाम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
शादी हो गई है अब मेरी रखना है बच्चे का नाम,
बच्चा भी अब वोही करता जो किये थे मैंने काम,
अब चिन्ता थी उसकी मुझको वो करेगा क्या काम,
मैं क्या सिखाऊंगा उसको मुझे न पता थे अपने काम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
जीवन आधा निकल गया पता न चला मुझे अपना काम,
जो देखा वोही सिखा नहीं पता था सही - गलत ज्ञान,
पहचान अभी भी थी अधूरी सही गलत थे मेरे काम,
अब कौन सिखाएगा मुझको ईश्वर तुम ही दो अब ज्ञान,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
शरीर मेरा अब वो नहीं था, बूढ़ा हो गया था मैं नादान,
ईश्वर मुझे अब तुम उठालो नहीं बची हैं मुझमे जान,
मैंने तो सोच लिया कुछ नहीं इस जीवन में काम,
ईश्वर का लो नाम और करते रहो सब काम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
अंत समय करीब था अब क्या मिलेगा मुझको ज्ञान,
अलविदा दोस्तों, 
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

Wednesday, May 12, 2010

धर्म एक सामाजिक विचार

आज का धर्म एक सामाजिक विचार (परिभाषा में परिवर्तन) : हरीश कुमार तेवतिया:


हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और इसाई : चारों ने समाज को आज कम से कम चार भागो में बाट दिया हैं। मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ की एकता की परिभाषा एकजुट होती हैं या चारगुट होती हैं? जो लोग उपरोक्त शब्दों का इस्तमाल करते हैं और एकता को चारगुटों में विभाजित करतें हैं वास्तव में वे व्यापारी हैं


"अगर विभाजित ही करना हैं तो ज्ञान को विभाजित करो जोकि व्यक्तिगत कर्मों से जुड़ा हो, जैसी रूचि, वैसा ज्ञान और सफलता हमारा भविष्य"


ये चार शब्द हमारी पहचान तो हो सकते हैं लेकिन धर्म नहीं, ये चारों शब्द हमारी आस्था, नियति और सोच की पहचान करा सकते हैं क्योंकि धर्म की राह पर चलने वालों ने केवल एक ही मत दिया हैं जो हैं कर्म! हम जगह - जगह पर महापुरषों और ग्रंथों की एक पंक्ति को लिखा पते हैं " हमारा धर्म ही हमारा कर्म हैं!"


फिर मिलेंगे !!

Sunday, May 9, 2010

ईश्वर अवतार लेता है - हरीश कुमार तेवतिया

मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि ब्लागस्पाट के जरिये मैंने एक ब्लॉग पर पढ़ा कि ईश्वर अवतार नहीं लेता और वह व्यक्ति हमे तर्क सहित यह बात लिखकर समझाना चाहता हैं, लेकिन मित्रों मुझे आपको यह बताते हुए ख़ुशी हो रही हैं कि ईश्वर अवतार लेता है, भगवान श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी ईश्वर के ही अवतार हैं. नीचे लिखी बाते यह साबित करती हैं कि ईश्वर अवतार लेता है.

श्रीमद्-भागवतगीता, अध्याय 4 - 07 : हे अर्जुन, जब-जब संसार में धर्मकी हानि और अधर्म की वर्धि होती हैं, तब-तब सही लोगों की रक्षा, दुष्टों का संहार तथा धर्म संस्थापना के लिए मैं, परमात्मा, हर युग में अवतरित होता हूँ।

श्रीमद्-भागवतगीता, अध्याय 7 - 24 :अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम।।24।।
बुद्धिहीन व्यक्ति मेरे असली अव्यक्तं लीलामय स्वरूप को न जानकर मुझे साधारण मनुष्य की भांति मानते हैं।


प्रभु अवतार का उदेश्य- श्रीमद्-भागवतगीता

श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे बहुत सारे जन्म हो चुके हैं, उन सब को मैं जानता हुं, पर तुम नहीं जानते. (4 .05) यदपि मैं अजन्मा, अविनाशी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर हुं, फिर भी अपनी प्रक्रति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हुं. (10 .14 भी देखें) (4 .06) हे अर्जुन, जब-जब संसार में धर्मकी हानि और अधर्म की वर्धि होती हैं, तब-तब सही लोगों की रक्षा, दुष्टों का संहार तथा धर्म संस्थापना के लिए मैं, परमात्मा, हर युग में अवतरित होता हुं. (तु. रा. 1 .120 .03 -04 भी देखे) (4 .07 - 08) हे अर्जुन, मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं. इसे जो मनुष्य भलीभांति जान लेता हैं, उसका मरने के बाद पुनर्जन्म नहीं होता तथा वह मेरे लोक, परमधाम, को प्राप्त करता हैं. (4 .06) राग, भय और क्रोध से रहित, मुझ में तल्लीन, मेरे आश्रित तथा ज्ञानरुपी ताप से पवित्र होकर, बहुत से मनुष्य मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं. (4 .10)

धन्यवाद मित्रों !!

Tuesday, April 20, 2010

गरीब जीवन की परिस्थिति

कुछ समय शांत स्थान पर व्यतीत करने के लिए, मैं शाम के समय अपने घर से बाहर निकला और एक स्थान पर जाकर बैठ गया. कुछ समय के बाद मैंने एक सब्जी बेचने वाले को एक महिला से झगड़ते देखा, उसी पल मैंने सोचा कि मैं वहां जाकर पता करूँ कि किस बात पर महिला और सब्जी बेचने वाले में झगड़ा हो रहा हैं. लेकिन उसी वक़्त सब्जी वाला वहां से अपनी ठेली लेकर मेरी तरफ आने लगा, पीछे - पीछे वह महिला भी आने लगी, तो मुझे लगा कि यहाँ मेरी सहायता की जरुरत हैं. मैंने उस महिला से पूछा कि आप दोनों क्यों झगड़ रहे हो?

झगड़े का विषय: उस महिला ने दो दिन से सब्जी बेचने वाले का पुराना उधार नहीं चुकाया था. और उसे शाम को घर में अपने दो बच्चो और अपने पति के लिए खाना पकाना था जिसके लिए उसने 10 रुपये के आलू उधार मांगे थे. आलुओ समेत उसका कुल उधार 57 रुपये हो गया था. इस बात के लिए सब्जी वाला तैयार नहीं था.

गरीब जीवन की परिस्थिति: वह महिला उस सब्जी वाले से निवेदन कर रही थी कि वह उसके 57 रुपये कल चुका देगी, तभी मैंने भी सब्जी वाले से आग्रह किया कि वह उस महिला को 10 रुपये के आलू दे दे, सब्जी वाले ने उसे आलू दे दिए और वह वहां से चला गया. मैं भी वहा से जाने ही लगा था तभी वह महिला मुझसे आगे निकल गई, और उस महिला का बच्चा बोला कि "अम्मी मुझे भी कुछ दिलादो, अम्मी अपने बच्चे से बोली "तेरे अब्बू को एक महीने से मजदूरी नहीं मिली हैं. मैं तुझे कुछ भी नहीं दिला सकती".

ये सभी बाते मैंने सुन ली थी, मैंने उस महिला से पूछा कि आपने सब्जी वाले को कल उधार चुकाने को कहा हैं आप वह कैसे चुकाओगी. महिला ने जवाब में कहा कि अगर मैं सब्जी वाले को ऐसा नहीं कहती तो आज मेरे बच्चों के लिए खाना नहीं बन पाता.