Thursday, June 17, 2010

गहराई : जीवन की

समुद्र की गहराई को,
पानी ही छुपाता है!
इसीलिए तो तैरने वाला,
डूब जाता है!

गहराई तो सभी में होती है,
अंतर इतना सा है की,
कोई समुद्र, तो कोई तालाब
बनकर रह जाता है!

गहराई भी जरुरी है क्योंकि,
समतल धरा पर पानी,
टिक नहीं पाता है!

प्रशन यह है कि, 
तालाब क्या और
समुद्र क्या पाता है?
कोई क्या पायेगा?
सब कुछ तो क्षमता से आता है!

किस्मत भी वह खुद बनाता है,
इसीलिए उसे याद रखा जाता है,
पर लोगो को भ्रम हो जाता है,
कि वह किस्मत की ही खाता है,
और क्षमता का मूल्य व्यर्थ हो जाता है!

कोई समाप्त,
तो कोई जीता ही जाता है,
किस्मत का खेल,
कौन जान पाता है,
तालाब तो पार कर भी लूँ हरीश,
पर समुद्र का छोर,
मुश्किल से आता है!

सही - गलत और लाभ - हानि


जहाँ लाभ होता हैं क्या वही सही होता हैं ? नहीं!

फायदा हमारे क्या काम आयेगा?
नुकसान से कुछ ना कुछ सिखा ही जायेगा!
सही को याद और गलत को नकारा जायेगा,
सही लाभ को करीब ही लायेगा,
गलत अंत में हमे हानि दे जायेगा,
अंजान बीच में फसकर चिल्लाएगा,
बताइये ये भी क्या अब ब्लॉग पर लिखा जायेगा!

क्या सही-गलत का फैसला लाभ-हानि से हो पायेगा?

Tuesday, June 15, 2010

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
दूध पीना - हंसना - रोना - खेलना ही है मेरा काम,
जाना तो केवल अपना और परिवार के सदस्यों का नाम,
कुछ करना है तो पढ़ना है, क्योंकि जरुरतमंदो का है यह काम,
मुझे दोस्त भी मिले उनका भी था यही काम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
माता - पिता ने कहा सीखो अब कुछ अच्छे काम,
माहौल ख़राब था इसीलिए मैं सीख गया कुछ गलत काम,
खिंचा - तानी में फंस गया जीवन और मैं होने लगा नाकाम,
माता - पिता ने कहा अब लो कुछ समय ईश्वर का नाम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
अब कुछ समझ नहीं आया करना था रोजी के लिए काम,
नौकरी भी लगी पर अभी थे कुछ अच्छे और बुरे मेरे काम,
जिम्मेदारी बढने लगी और माता - पिता देने लगे मुझको ज्ञान,
शादी के लिए था मैं अब तैयार मैंने ही किये थे कुछ ऐसे इंतजाम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
शादी हो गई है अब मेरी रखना है बच्चे का नाम,
बच्चा भी अब वोही करता जो किये थे मैंने काम,
अब चिन्ता थी उसकी मुझको वो करेगा क्या काम,
मैं क्या सिखाऊंगा उसको मुझे न पता थे अपने काम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
जीवन आधा निकल गया पता न चला मुझे अपना काम,
जो देखा वोही सिखा नहीं पता था सही - गलत ज्ञान,
पहचान अभी भी थी अधूरी सही गलत थे मेरे काम,
अब कौन सिखाएगा मुझको ईश्वर तुम ही दो अब ज्ञान,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
शरीर मेरा अब वो नहीं था, बूढ़ा हो गया था मैं नादान,
ईश्वर मुझे अब तुम उठालो नहीं बची हैं मुझमे जान,
मैंने तो सोच लिया कुछ नहीं इस जीवन में काम,
ईश्वर का लो नाम और करते रहो सब काम,
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?

मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?
अंत समय करीब था अब क्या मिलेगा मुझको ज्ञान,
अलविदा दोस्तों, 
मैं कौन हूँ कब जानूंगा ?, क्या केवल अपना ही नाम ?