चाहे गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह गुनाहगार हों या ना हो लेकिन गुजरात सरकार को पक्ष लेना और विपक्ष को हमेशा की तरह विरोध करना जरुरी क्यों है? सवाल यह उठता है कि क्या राजनीतिज्ञों को भारतीय कानून पर भरोसा नहीं है?
पक्ष-विपक्ष की क्या जिम्मेदारी होती है? हमें तो समझ आ रहा है की केवल समर्थन अथवा विरोध ही उनका काम होता है. राजनीति का यह एक अजीब रंग है कि राजनीतिज्ञ अदालत के बीच में भी अपना फैसला सुना सकते है! ये क्या मजाक है "जिसका काम उसी का साजे, कोई और करे तो डंडा बाजे" - अगर सीबीआई जैसी संस्था अपने काम को सही तरह से नहीं करेगी तो हो सकता है कुछ समय बाद केवल राजनीति ही न्याय और अन्याय करेगी! "जिसकी लाठी उसकी भैस", अच्छा है.
काम की कमी नहीं है, पर राजनीति में कोई काम नहीं है, केवल राजनीति ही है! मिया - बीबी जान से गए और मामला विपक्षी दलों के खेल तक जा पहुँच. मेरे विचार से कानून को अपना काम करना चाहिए, और राजनीतिज्ञों को इसमें रोड़ा नहीं अटकाना चाहिए, ना ही पक्ष को और ना ही प्रतिपक्ष को.
ऐसे हालात में यह आशा करना कि "भारतीय राजनीति अब नया रंग लेकर आएगी" दूर की गोटी लगती है.
पक्ष-विपक्ष की क्या जिम्मेदारी होती है? हमें तो समझ आ रहा है की केवल समर्थन अथवा विरोध ही उनका काम होता है. राजनीति का यह एक अजीब रंग है कि राजनीतिज्ञ अदालत के बीच में भी अपना फैसला सुना सकते है! ये क्या मजाक है "जिसका काम उसी का साजे, कोई और करे तो डंडा बाजे" - अगर सीबीआई जैसी संस्था अपने काम को सही तरह से नहीं करेगी तो हो सकता है कुछ समय बाद केवल राजनीति ही न्याय और अन्याय करेगी! "जिसकी लाठी उसकी भैस", अच्छा है.
काम की कमी नहीं है, पर राजनीति में कोई काम नहीं है, केवल राजनीति ही है! मिया - बीबी जान से गए और मामला विपक्षी दलों के खेल तक जा पहुँच. मेरे विचार से कानून को अपना काम करना चाहिए, और राजनीतिज्ञों को इसमें रोड़ा नहीं अटकाना चाहिए, ना ही पक्ष को और ना ही प्रतिपक्ष को.
ऐसे हालात में यह आशा करना कि "भारतीय राजनीति अब नया रंग लेकर आएगी" दूर की गोटी लगती है.