
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और इसाई : चारों ने समाज को आज कम से कम चार भागो में बाट दिया हैं। मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ की एकता की परिभाषा एकजुट होती हैं या चारगुट होती हैं? जो लोग उपरोक्त शब्दों का इस्तमाल करते हैं और एकता को चारगुटों में विभाजित करतें हैं वास्तव में वे व्यापारी हैं
"अगर विभाजित ही करना हैं तो ज्ञान को विभाजित करो जोकि व्यक्तिगत कर्मों से जुड़ा हो, जैसी रूचि, वैसा ज्ञान और सफलता हमारा भविष्य"
ये चार शब्द हमारी पहचान तो हो सकते हैं लेकिन धर्म नहीं, ये चारों शब्द हमारी आस्था, नियति और सोच की पहचान करा सकते हैं क्योंकि धर्म की राह पर चलने वालों ने केवल एक ही मत दिया हैं जो हैं कर्म! हम जगह - जगह पर महापुरषों और ग्रंथों की एक पंक्ति को लिखा पते हैं " हमारा धर्म ही हमारा कर्म हैं!"
फिर मिलेंगे !!